दाँत दर्द के झाडने का मन्त्र
'ॐ नमः आदेश कामरु देश कामाख्या देवी, जहाँ बसे इस्माईल जोगी । इस्माईल योगी ने पाली गाय, नित दिन चरने बन में जाय । बन में सूखा घास पात जो खाय, उसके गोबर ते कीड़ा उपजाय । सात सूत सुतियाला, पुच्छि पुच्छि याला । देह पोला मुख काचा । वह अन्न कीड़ा दन्त गलाबे मसूढ़ गलावे, डाढ़ मसूढ़ करे पीड़ा तो गुरु गोरखनाथ की दोहाई फिरे । '
इस मंत्र के प्रयोग के लिए तीन लोहे की कीलें लेकर, इन्हें सात बार अभिमंत्रित करके किसी लकड़ी में ठोंक दें। दाँत, मसूढ़ों और डाढ़ के दर्द में इससे लाभ होता है।
* आवश्यक सूचना * तन्त्र मन्त्र अपने कार्य की सिद्धि के लिये हैं, न कि उनसे अनु चित लाभ उठाया जावे। पुस्तक में बहुत से उपयोगी तन्त्र मन्त्र दिये गये हैं फिर भी हमारी उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। जिस प्रकार कुआँ या तालाब जल पीने के लिये होता है न कि उसमे डब कर आत्महत्या की जावे या उससे किसी का अनिष्ट किया जावे।
यह पुस्तक सर्व के कल्याण उपयों द्वारा किर भी कोई कुरी प्रकृति का गुण के लिये प्रकाशित की गई है किसी का अनिष्ट करे या और कोई अनुचित उपाय अपनाये तो उसमें हमारा क्या दोष है ?
पुस्तके लिखिता विद्या सादरं यदि जप्यते, सिद्धिनं जायते तस्य कल्प कोटि शर्तेरी । गुरुं विनापिशास्त्रेऽस्मिन्नाधिकारः कथेचन् ।।
अर्थ- जो व्यक्ति केवल पुस्तक लिखित विषय को देखकर ही मन्त्र जप आरम्म करके सिद्ध होना चाहते हैं, वह कभी भी सिद्ध को प्राप्त नहीं कर पाते, क्योंकि कामाक्षा मन्त्र अथवा मन्त्र शास्त्र की सिद्धि का अधिकार गुरु के समीप ही लाभार्थ माना गया है । अतः बिना गुरु के सिद्धि नहीं मिलती। इसलिये गुरु के उप देशानुसार ही कार्य को प्रारम्भ करना योग्य है ।
वैसे तो आज का यूग वैज्ञानिक व यन्त्रों का युग है ऐसे तन्त्र मन्त्र का नहीं, फिर भौ जिनका विश्वास है उनको फल मिलता ही है।