## दशमा व्रत 2025: घर की दशा सुधारने का पावन पर्व
> **"दशमी तिथि को दशा माता का व्रत रखने से दसों दिशाओं से घर में धन-धान्य, सुख-शांति और समृद्धि आती है"** - पौराणिक मान्यता
हिंदू धर्म में **दशमा व्रत (दशा माता व्रत)** का विशेष स्थान है। यह व्रत मुख्य रूप से **सुहागिन महिलाएं** अपने परिवार की सुख-समृद्धि, पति की दीर्घायु और घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करती हैं। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाए जाने वाले इस व्रत में **पीपल के वृक्ष की पूजा** और **कच्चे सूत के डोरे** का विशेष महत्व है। आइए जानें 2025 में इस व्रत की सम्पूर्ण जानकारी।
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### ⭐ दशमा व्रत 2025: तिथि व शुभ मुहूर्त
2025 में दशमा व्रत **24 मार्च, सोमवार** को मनाया जाएगा। दशमी तिथि का समय इस प्रकार है:
- **आरंभ**: 24 मार्च सुबह 05:39 बजे
- **समाप्त**: 25 मार्च सुबह 05:05 बजे
पूजा के लिए **शुभ मुहूर्त**:
- 06:20 AM से 07:52 AM
- 09:24 AM से 10:56 AM
- 12:03 PM से 12:52 PM
- 03:31 PM से 05:03 PM
- 05:03 PM से 06:35 PM
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### 🙏 दशा माता व्रत की पूजा विधि: स्टेप बाय स्टेप गाइड
1. **सुबह की तैयारी**:
- भोर में उठकर स्नान करें व स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर की **साफ-सफाई** विशेष रूप से करें और नया **झाड़ू खरीदें** (मान्यता: ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं) ।
2. **पूजा सामग्री**:
- कच्चा सूत (10 तार का डोरा), हल्दी, कुमकुम, रोली, चावल, फूल।
- पीपल के पत्ते, दूध, जल, शहद, गंगाजल और बिना नमक का भोजन ।
3. **पूजन प्रक्रिया**:
- पीपल के वृक्ष को **कच्चे दूध व जल** से सींचें।
- डोरे में **10 गांठें** लगाकर हल्दी से रंगें।
- पेड़ के चारों ओर डोरा लपेटते हुए **10 परिक्रमाएं** करें ।
- पीपल के पत्ते को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें (धन संचय का प्रतीक) ।
4. **कथा श्रवण**:
- पीपल के नीचे बैठकर **राजा नल-दमयंती की कथा** सुनें या सुनाएं ।
5. **डोरा धारण**:
- पूजा के बाद डोरे को गले में बांधें। इसे **"दशा माता का डोरा"** कहते हैं, जो सालभर पहना जाता है ।
6. **घर की रक्षा**:
- घर लौटकर मुख्य द्वार पर **हल्दी-कुमकुम के छापे** लगाएं ।
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### ⚠️ व्रत के नियम व सावधानियां
- **भोजन नियम**:
- दिन में **सिर्फ एक बार** बिना नमक का भोजन करें। गेहूं से बनी रोटी या फलाहार लें ।
- कथा सुनने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
- **विशेष सुझाव**:
- इस दिन **न तो उधार दें** और **न ही उधार लें** ।
- सुहागिन महिलाएं **मेहंदी** लगाएं और **सुहाग की वस्तुएं** (शीशा, चूड़ी आदि) दान करें ।
- **डोरे का नियम**:
- डोरा सालभर पहनें। यदि संभव न हो, तो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में किसी शुभ दिन इसे पीपल पर अर्पित कर दें ।
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### 👵 योग्यता क्राइटेरिया: कौन रख सकता है व्रत?
- **मुख्य रूप से सुहागिन महिलाएं** इस व्रत को करती हैं।
- **पुरुष व कुंवारी लड़कियां** भी परिवार की भलाई के लिए व्रत रख सकते हैं ।
- **विशेष नोट**: यदि एक बार व्रत शुरू कर दिया, तो **जीवनभर** इसे करना होता है। इसका **उद्यापन नहीं** किया जाता ।
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### 📖 दशा माता व्रत की कथा: राजा नल का रहस्य
पौराणिक कथा के अनुसार, **राजा नल** ने क्रोध में आकर रानी **दमयंती** के गले से दशा माता का डोरा तोड़ दिया। इससे उनका **सौभाग्य टूट गया** और राज्य नष्ट हो गया। एक स्वप्न में दशा माता ने राजा को **पीपल पूजन** कर पीला धागा अर्पित करने को कहा। ऐसा करने पर राजा को उसका राज्य वापस मिल गया। तब से यह व्रत **दशा सुधारने** के लिए किया जाता है ।
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### 💫 दशमा व्रत के लाभ: क्यों करें यह व्रत?
- घर की **आर्थिक समस्याएं** दूर होती हैं।
- ग्रहों की **प्रतिकूल दशा** शांत होती है।
- परिवार में **स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि** आती है ।
- **महिलाओं** को **सौभाग्य** की प्राप्ति होती है।
> **"जो महिला इस व्रत को श्रद्धा से करती है, उसके घर से दरिद्रता दूर होकर लक्ष्मी का वास होता है"** - धार्मिक शास्त्र ।
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### 🔍 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
**Q: क्या विधवा महिलाएं यह व्रत रख सकती हैं?**
A: यह व्रत मुख्यतः सुहागिन महिलाओं के लिए है, पर विधवाएं परिवार की भलाई के लिए इसे रख सकती हैं ।
**Q: डोरा खोलने का सही तरीका क्या है?**
A: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में शुभ दिन देखकर डोरे को पीपल पर अर्पित करें या मंदिर में रख दें ।
**Q: क्या पूरे 10 दिन व्रत रखना ज़रूरी है?**
A: नहीं, यदि 10 दिन व्रत रखना संभव न हो तो **सिर्फ दशमी तिथि** को व्रत रखने से भी पूर्ण फल मिलता है ।
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### 🌿 निष्कर्ष: आधुनिक जीवन में व्रत का महत्व
दशमा व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि **परिवार की एकजुटता** का प्रतीक है। यह हमें प्रकृति (पीपल वृक्ष) के साथ तालमेल बनाना, संयमित जीवन जीना और जीवन की चुनौतियों में धैर्य रखना सिखाता है। 24 मार्च 2025 को इस व्रत को विधि-विधान से करके अपने घर की **दशा और दिशा** सुधारें।
> **"दशा माता का आशीर्वाद सदैव उन पर बना रहता है, जो श्रद्धा व साफ़-सुथरे मन से इस व्रत को करते हैं"**।