Dahsama ka var 25 julay 2025 ko hai
दशामाँ व्रत-पूजनविधि
व्रत का समय : प्रत्येक वर्ष आषाढ़ वदी अमावस की जो दिवस
के दिन से प्रसिद्ध है उस दिन स्नान करके दशामाँ का व्रत लेना चाहिये । पूरे दस दिन व्रत करने के बाद श्रावण सुदी दसमी अथवा एकादशी के दिन दशामाँ के व्रत का समापन करना चाहिये ।
दशामाँ के व्रतकी पूजनविधि : जिन्हों ने इस व्रत को लिया
है, वे अषाढ वदी अमावास्या के दिन प्रातःकाळ स्नान करके स्वच्छ होकर मनमें 'जय जशामाँ' 'जय दशामाँ' का जाप करें और दशामाँ का ध्यान धरें । एक पाट पर लाल वस्त्र विछाकर उसके उपर दशामाँ की मूर्ति या तस्वीर का स्थापन करें । यदि मूर्ति या तस्वीर न हो तो मन में दशामाँ का संकल्प करके स्थापना करें ।
सांढणी (ऊँटनी) दशामाँ का वाहन है। इस लिये मीट्टी की
एक सांढणी बनाकर पटा पर रखें। फिर कच्चे सूत के दस तार लेकर उसे कुमकुममें डुबो कर उसकी दस गाँठें बाँधे और तांबे के कलश पर लपेट दें। धागे के दूसरे नौ तार लेकर और एक तार अपने वस्त्र का लेकर उसका डोरा वनाकर कंकु में डुबोकर अपने दाहिने हाथ पर बाँधे । इसके बाद धूपदीप कर खूब श्रद्धासे माँ की कथा सूनें। कथा पूरी होने पर
जय दशामाँ
जय दशामाँ
इस तरह एकसो पच्चीस वार जप करें ।
फिर मूर्ति, पटा और कलश को कंकुसे तिलक करें । दशामाँ का वाहन सांढणी को तिलक लगा कर पूजन करें ।
प्रसाद : दशामाँ के व्रत की उपर की विधि समाप्त होने के बाद
माताजी को प्रसाद चढाना होता है। प्रसादमें सवासौ ग्राम लापसी, लड्डु या चावल पका कर घी, गुड मिला कर नैवेद्यको दशामाँ को आरती करके धराएँ विशेष : अषाढ वदी आमावस्यासे श्रावण सुदी दसमी तक तन और मन को पवित्र रखें । दस दिन तक निराहार उपवास रखें । यदि यह संभव न हो तो एख समय आहार लेकर उपवास करें । रात को जागरण करें । दशामाँ की स्तिति करती रहें । 1 यह प्रसाद बाँटे
व्रत की समाप्ति : ग्यारहवें दिन पटा पर जो मिट्टी की सांढणी थी उसे नदी में सिरा दें। अपनी शक्ति अनुसार सुपात्र ब्राह्मण को अन्नदान दें और ब्राह्मण-स्त्रीको सौभाग्य-श्रृंगार, वस्त्र दें । तन मन और पवित्रता से श्रद्धा वनाये रख कर व्रत की समाप्ति करें 1
व्रत का समापन : इस प्रकार पाँच वर्ष तक व्रत करें । शक्ति
के अनुसार चाँदी या सोने की सांढणी वनाकर, पूजा कर के नदी के पानी में सिरा दें, अथवा तो सुपात्र ब्राह्मण को दान कर दें । अथवा यथाशक्ति पुण्य-दान करें । ब्राह्मणो को भोजन दें । वालको को भी भोजन-प्रदान करें । दशामाँ की ५ या ११ पुस्तकें पढ़ें ।
इस व्रत के प्रभाव से बुरी दशा नष्ट होती है । सुख-शांति मिलती है और श्रद्धा अनुसार फल प्राप्ति होती है ।
दशामाँ के चमत्कार
(1)
अहमहाबाद के दानापीठ विस्तार में माँ दशामाँ का एक सुंदर मंदिर है। स्त्रीयाँ बडी श्रद्धा और भक्ति से उनके दर्शन को जाती है।
एक मारवाडी स्त्रीके घर धनसंपत्ति और सुखचैन तो वहुत था। परंतु कमी थी तो एक वात की। उनके घर अभी तक पालना नहीं बँधा था । उनकी उम्र भी करीब सडतीस अडतीस हो चुकी थी । पुत्र पानेकी उनकी इच्छा दिनवदिन प्रबल होती जा रही थी लेकिन वात कुछ बन नही पा रही थी ।
कुछ स्त्रियों को दशामाँ का व्रत करते हुए देख उसने पूछा, 'यह व्रत करने से क्या क्या लाभ होता है?'
किसीने कहा, 'अगर अपनी दशा बुरी चल रही हो तो वह टल जाती है ।'
दूसरीने कहा 'मा दशामाँ अपनी सभी मनोकामनाएँ पूरी करती है।' उस मारवाडी स्त्री को लगा कि शायद मेरे व्रत करने से दशामाँ प्रसन्न हो और मुजे पुत्रप्राप्ति हो ।
उसने भी दशामाँ का व्रत किया । घरमें दशामाँ की मूर्ति का स्थापन किया और श्रद्धासे उनकी पूजा की ।
एक साल बीता ।
दूसरा वर्ष गुजरा ।
फिर तीसरा...
और फिर आशा की किरण फूटी। दशामाने आखिर उस मारवाडी स्त्री को पुत्र दिया। पाँचवे साल उस मारवाडी स्त्रीने व्रत का समापन किया ।
चांदी का सांढणी उसने ब्राह्मणको दानमें दी ।
ब्राह्मणोंको भोजन करवाया ।
बालभोजनका प्रबंध भी किया ।
यथाशक्ति दान-पुण्य भी किया। आज भी माँ दशामाँ की कृपा से वह मारवाडी स्त्री और उसका पुत्र सुख-शांतिसे जीते है।
(2)
अहमदाबाद जिलेके नलकांठा विस्तारमें नानादेरा नामक एक सुंदर गाँव है। वह नंदुवहन नामक लडकीका मायका था। ससुरालवाले नंदुबहन को लेने के लिये आते नहीं थे । उसकी सास वहुत ही घटिया स्त्री थी । एक या दूसरे बहाने वह उसका अपमान करने का मौका हाथ से जाने देती नहीं थी। वह नंदुबहन के पति को रोज शिकायत करती कि नंदु खाना बराबर पकाती नहीं है और साफ सफाई भी बराबर करती नहीं है। वह बहुत कामचोर है । पानी भरने जाती है तो एक घंटेके के बाद लौटती है ।
नंदु का पति उसे खूब चाहता था। लेकिन वह भी अपनी माँ को नाराज करना नहीं चाहता था। नंदु और उसके पति की आपस मे बनती देख नंदुकी सास जल उठती थी । एक दिन वात ही वात में मामला बिगड गया। नंदु पर उसके पति का हाथ उठ गया। स्वाभिमानी नंदु मायके चली आई। दो बरस बीते । लेकिन ससुरालसे नंदु को लेने कोई भी न आया तो वह भी आकुल-व्याकुल हो रनी ।
उसका पिता भी निद पर अ गया था कि नंदके ससुरालवाले आकर पहेले माफी माँगें तोही वह नंदुको ससुराल भेजेगा । इतनेमें दिवासाका दिन आया । नंदुने अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिये दशामाँ का व्रत रखा। दसवें दिन जागरण किया । ग्यारहवें दिन व्रत की समाप्ति की ।
नंदुने दशामाँ से प्रार्थना की, 'हे माँ मैने तेरा व्रत पूरा किया। गब तू मेरी मनोकामना पूरी कर ।'
और नंदु पर माँकी कृपादृष्टि हुई । नंदु के ससुरालवाले उसे लेने आये । उन्होंने नंदके बाप को मनाया और नंदु को अपने साथ ले गये ।
नंदुका पतिसे मिलन हुआ ।
दशामाँ ने नंदु का दुःख दूर किया ।
नंदुने श्रद्धासे दशामाँ का व्रत किया तो उसका फल भी उसे मिला और आशीर्वाद भी।
(3)
वठीयार के मुंजपर गाँव की एक स्त्रीने अडतीस वें साल में पुत्र को जन्म दिया । वह तो खुश हो गई। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन न टिकी । तकलीफ इस बात की थी कि वच्चे को पिलाने के लिये माँ के स्तन में दूध आ नहीं रहा था । नवजात शिशु रोने लगा। गाय या भैंस का दूध उसे माफिक नहीं आ रहा था ।
किसी ने उस स्त्री को दशामाँ का व्रत करने की सलाह दी। उस स्त्रीने बडी श्रद्धासें माँ का व्रत किया।
सिर्फ पांचवे ही दिन उस स्त्री के स्तन से दूध बहने लगा। उस दिनसे वह उसे स्तनपान से संतुष्ट कर सकी ।
आषाढ आया ।
उस स्त्री ने दशामाँ का व्रत किया। घर में दशामाँ का स्थापन किया। मिट्टि की सांढणी की स्थापना की। अखंड ज्योत जलाई। निराहार उपवास किये ।
ग्यारहवें दिन व्रत की समाप्ति की ।
दशामाँ की कृपासे उस स्त्रीका संकट टल गया ।
(4)
साणंद गाँव में शकरीबहन नाम की एक भोली भाली औरत रहती थी । उसकी तबीयत ठीक रहती नहीं थी। वह हर रोज किसी न किसी बिमारी का शिकार बनी रहती थी ।
आषाढ महिना आया। उसके साथ दिवासाका दिन । सब स्त्रीयोंने दशामाँ का व्रत किया । शकरीवहन की तवीयत ठीक न होने के बावजूद दशामाँ व्रत किया । घर में पटा पर दशामाँ का स्थापन किया । कलश का स्थापन किया । दशामाँ का डोरा बांधा । सुबह शाम माँ की पूजा की । निराहार उपवास किये ।
दस दिन पूरे हुए।
माँ की कृपा से शकरीवहन का स्वास्थ्य सुधरने लगा। ग्यारहवे दिन उन्होंने व्रत की समाप्ति की। शकरीबहन की बिमारी गायब हो गई ।
पांच सालके बाद उन्होंने व्रतका समापन किया ।
आज भी शकरीबहन माँ दशामाँ की परम भक्त है। जो काम असंख्य डोकटर न करक सके वह दशामाँ ने कर दिखाया ।
।। जय दशामाँ ।
(5)
महेमदाबाद में मनुभाई नामका एक युवक कपडों की फेरी लगाता था । थोडी बहुत आमदानी होती थी कि तुरंत एसी कोईना कोई घटना बटती थी जिस में इकठ्ठा किया हुआ पैसा खर्च हो जाता था । इस तरह व्यापार से कोई खास लाभ पहुँचता न था। फिर भी जैसे तैसे वह अपना चक्कर घुमायें जाता था ।
एक दिन मनुभाई कपडों का भार पीठ पर लाद कर जाता था तो रास्तेमें उसका पैर फिसल गया और हड्डी टूट गई। उसका व्यापार ठप हो गया । आमदनी का एकमात्र साधन भी छिन गया मनुभाई की पनि जशोदा बहुत ही धर्मपरायण स्वभाब की थी / उसको भगवान पर अपार श्रद्धा थी। वह सदा भजन कीर्तन में मग्न रहती थी । हर महिने एक बार तो अपने यहाँ भजन-कीर्तन का कार्यक्रम आयोजित करती रहती थी ।
आषाढ वदी आमावास्याका दिन आया ।
जशोदा ने दशामाँ का व्रत किया और अपनी दशा सुधारने के लिये दशामाँको प्रार्थना की। एक दिन वह भजनगान के लिये गाँवमें गई थी तब मनुभाई खटिया में पडा अपने भाग्य को कोस रहा था । उतने में एक बुढिया आई और मनुभाई का हालचाल पूछा । फिर उसने थेली में से ५००० रुपये निकालकर उसे दिये और कहा, 'मनु, इस ५००० रुपये से फिर से एकबार तू व्यापार शरु कर । तेरा पैर भी अब दो चार दिनमें ठीक हो जायेगा । इस बार कपडे के व्यापार में तुझे ढेर सारा मुनाफा भी होगा ।'
'आप कहाँ से आ रही है, माँजी ?' मनुभाईने पूछा । ची
'अहमदाबाद के दानापीठ से ।'
और वह बुढिया चली गई ।
जशोदा घर लौटी तो मनुभाई ने उसे बुढिया के बारेमें बताया । उसी रात दशामाने जशोदा को सपने में दर्शन दिया और कहा, 'बेटा, में बुढिया बन कर तेरे घर आई थी । तूने मेरा व्रत रखा इस लिये अव तेरी स्थिति सुधरेगी । व्यापार में जो मुनाफा हो उसका कुछ हिस्सा दानपुण्य में खर्च करना ।'
जशोदा ने दशामाँ का व्रत पूर्ण किया ।
मनुभाई का पैर भी ठीक हो गया और बुढियाने जो ५००० रुपये दिये थे उससे कपडों का व्यापार फिर शट्ट किया । एक साल में उसे दुगना मुनाफा हुआ ।
पति-पत्नि दानापीठ गये और बुढिया की तलाश की। वह तो न मिली लेकिन पता चला कि दानापीठ में दशामाँ का मंदिर था । दोनों ने दशामाँके दर्शन किये और ३०००० रुपयोंका दान किया ।
दशामाँ जिस तरह मनुभाई और जशोदा पर कृपा की उसी तरह सब पर करें ।
जय दशामाँ ।
आणंदमे रहती कोकिलाबहन दशामाँ की भक्त थी। उसने दशामाँ का व्रत बडे भक्ति-भावसे किया। पांचवें साल विधिव्रत का समापन किया । उसे दशामाँकी कृपाका अत्यंत सुखद अनुभव हुआ । कोकिलाबहन की शादी हुई तब उसका पति एक संस्था में मामूली क्लर्क था । उसने दशामाँ का व्रत किया और उसी सालसे संस्था के मालिक ने उसे पच्चीस परसेंट की भागीदारी दी। दूसरे साल उनके वहाँ एक पुत्र का आगमन हुआ । जिस साल कोकिलावहन ने व्रत का समापन किया उस साल उन्हों ने एक नया मकान खरीदा, अपना खुद का व्यापार शरु किया और मारुति कार भी ली। आज भी दशामा की कृपा से उसकी संस्था बहुत अच्छी तरह चल रही है।
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