सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विशिष्ट पोस्ट

DASHAMA VARAT 2025

Dahsama ka var 25 julay 2025 ko hai

The Story of Nala-Damayanti | नल-दमयंती की कथा | DASHAMA varta 2025

The Story of Nala-Damayanti



प्राचीन काल में नैषध नामका एक सुंदर नगर था। उस देश का राजा नल अत्यंत स्वरूपवान था। प्रजा में भी वह बहुत प्रिय था। नल की पत्नि दमयंती अत्यंत सुंदर, गुणवान और संस्कारी थी। उसे वरदान था कि वह जब भी अपने दाहिने हाथ से मृत जीव को स्पर्श करेगी तो वह मृत शरीर जीवित हो उठेगा। सरिता के तट पर राजाने एक सुंदर महल का निर्माण किया था। सारा दिन राजा राज्य की कार्यधुरा में जुटा रहता था। सायंकाल को वह विश्राम के लिये इस महल में लौटता था।

एक समय की बात है, राजा नल प्रातः नहा-धोकर वस्त्रालंकार से सुसज्जित होकर दरबार में गया। रानी दमयंती महल की खिडकी के पास बैठकर बाहर सरोवर का अवलोकन कर रही थी। उसने देखा कि सरोवर के किनारे कुछ स्त्रियाँ श्रृंगार सज कर हाथ में पूजा की थाली लिये पूजा कर रही थी। दमयंती को कुतुहल हुआ कि वे क्या कर रही थी। उसने अपनी दासी को इसका पता लगाकर आने को कहा।

दासी सरोवर किनारे गई और एक स्त्री को पछा, "हमारी रानी जानना चाहती है कि आप क्या कर रही है।"

वह स्त्री बोली, "आज दशामाँ का दिन है। हम दशामाँ का डोरा बाँध रहे हैं।"

दासी दमयंती के पास वापस आई और उस स्त्री के साथ हुई बातचीत दोहराई।

1 दमयंती ने कहा, "तू भी वहाँ जा और मेरे लिये दशामाँ का डोरा ले आ।"

दासी उन स्त्रियों पास गई और कहा, "हमारी रानी के लिये डोरा दो।"

वह स्त्रीने कहा, "गोकुलाष्टमी के दिन सूत के नौ तार और अपने वस्त्र का एक तार इकट्ठा करके दस तार का डोरा बनाकर हाथ के उपर के भाग में बाँधना चाहिए। दशामाँ के इस डोरे के प्रभाव से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस डोरे का अनादर करने से अनेक प्रकार की विपत्तियाँ आती है। उनसे बचने के लिये दशामाँ का व्रत लेना चाहिए। लेकिन तुम्हारी रानी यह सब कर सकती है तो दशामाँ का डोरा ले जाओ।"

दासी ने दशाफल का डोरा लाकर दमयंती को दिया। यह नौ तार का डोरा था। अपने वस्त्र का एक तार डाल कर धूप-दीप से डोरे का पूजन करके दमयंती ने उसे अपने दाहिने हाथ पर बाँधा और श्रद्धा से व्रत की विधि की। सायंकाल को राजा मृगया के बाद महल में लौटा तो रानी सिंगार सज कर बैठी थी। उसके हाथ पर डोरा बँधा हुआ था।

राजा ने पूछा, "यह डोरा कैसा?"


रानी ने कहा, "यह दशाफल का डोरा है। मैं दशामाँ का व्रत लिया है। इससे हम किसी भी विपत्ति से मुक्त रहेंगे।"

राजा बोला, "हमारे पास धनसंपत्ति, सुखशांति आदि सबकुछ है। फिर इस डोरे की क्या जरूरत है?"

उसने वह डोरा तोड डाला और पास ही में सुलगती अग्नि में डाल कर जला दिया।

राजों ने दशामाँ के डोरे का अपमान किया था। डोरा जैसे जैसे जलता गया वैसे वैसे नैषध देश की सुख-समृद्धी घटने लगी। अकाल पडने लगा। लोग भूख से मरने लगे। प्रजा खाने की तलाश में परदेश चली गई। पडोश के राजा ने आक्रमण किया और राजा की राजगद्दी छिनकर नगर से बाहर निकाल दिया। राजा और रानी परदेश की और चल पडे।

वे चलते गये, चलते गये...


एक देश...

दूसरा देश...

फिर तीसरा...

आखिर वे कनकावती नगर आये जहाँ मोतीसर तालाब था। राजा-रानी तालाब के किनारे बैठे। उन्हें जोरों की भूख लगी थी। राजाने तालाब में जाकर पाँच मछलियाँ पकडी और दमयंती को दी और कहा, "तुम इनको धोकर तैयार करो। तब तक मैं नगर में जाकर कुछ रोटी-खिचडी का बंदोबस्त करके लौटता हूँ।"

राजा नगर में गया। नगर का नगर शेठ हररोज गरीबों और भिक्षुकों को भोजन कराता था। राजा ने उसे अपनी व्यथा सुनाई तो शेठ ने उसे एक बडे पात्र में पके हुए चावल दिये। राजा उस पात्र कों सिर पर रखे तालाब की और जा रहा था। इतने में एक चील उडती हुई आई और राजा के सिर पर रखा पात्र अपने दोनों पंजों के बीच दबाकर ले उडी। राजाने उपर देखा तो पात्र में चावल का एक दाना गिर कर उसकी मूँछ में चिपक गया।

राजा निराश होकर दमयंती के पास लौटा और उसे जो घटना घटी थी वह सुनाई। लेकिन उसकी मूँछ में चिपका दाना देखा। उसे राजा की नियत पर शक हुआ।

राजाने कहा, "वह मछलियाँ कहाँ है?"

रानी ने कहा, "उन मछलियों न्को न जाने क्या हुआ कि वे सजिवित होकर तालाब में जा गीरी।"

"क्या ?"

"हाँ, मैं सच कहती हूँ।'

है?" राजा ने पूछा, "लेकिन मृत मछलियाँ सजिवित कैसे हो सकती

रानी ने कहा, "मेरे दाँये हाथ में अमरबेल है। उसके स्पर्श से कोई भू मृत जीव जीवित हो जाता है।"

राजा क्रोधित हो उठा और कहा, चावल से भरा पात्र चील ले उडी और मैं भूखा का भूखा ही रहा। तूने सारी मछलियाँ खा ली। तूं स्वार्थी है। अब तुं मेरी रानी नहि।"

रानी ने कहा, "किन्तु..."

"मैं कुछ सूनना नहीं चाहता।"


रात को जब वे दोनों सो गये तो राजा मन ही मन अब भी दमयंती पर खफा था। उसे यह समज में न आया कि सब कुछ दशामाँ के क्रोध का परिणाम है। उसने रानी का त्याग करने का फैसला कर लिया।

उसने रानी की ओर देखा तो वह सो रही थी। राजा उठा और उसे अकेली वन में छोडकर निकल पडा।

दूर गया तो उसने जंगल में भयानक आग जलती देखी। उस आग में एक काला सर्प जल रहा था। नल ने उसे बचा लिया। सर्प ने उसे कहा, "मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। कोई वर माँगो। राजा ने कहा, "मुझे अपना काला रंग दो और कुरुप बना दो।" सर्प ने वैसा ही किया और कहा, "जब भी असली रुप पाना हो, मुझे बाद करना, मैं आकर फिर से तुम्हें सुंदर बना दूँगा।"

राजा नल काला शरीर और कुरुप मुख लिये आगे बढ़ा। वह एक नगर में पहुँचा। राजा अश्वविद्या में अत्यंत कुशल था। उसे अश्वशाला में अश्वों को तैयार करने की नौकरी मिल गई।

उधर सुबह हुई और दमयंती की नींद खुली तो नल को अपने पास न पाकर घोर कल्पांत करने लगी। रोती कलपती इधर-उधर भटकती वह एक नगर के पास आई। वह नगर उसके पिता का था। उसने दासी को बुलाया। दशामाँ के कोप के कारण वह उसे पहचान न सकी। दासी को बिनती करके वह भी महल में दासी बनकर काम करने लगी। उसका कार्य भोजन बनाना, अपनी रानी अर्थात् माँ के केश गूंथना और उसकी अन्य सेवाएँ करना था। महल में उसके मातापिता तो क्या और कोई भी पहचान न सका। उसके भी किसीको अपना परिचय नहीं दिया।

इस प्रकार सेवा करते करते दिन बीतते गये। सप्ताह पर सप्ताह

संकट नष्ट हो जायेंगे ।"

सपने में ही दमयंती ने इष्टदेव से कहा, "हे प्रभु, मेरे पास तो कुछ नहीं है। दीप जलाने को घी कहाँ से लाउं?"

इष्टदेव ने कहा, "घोडे की लींद से दिप बना, पूजा में सुपारी के स्थान पर एक चना रख। ऐर दिप में घी की जगह घास का बुरादा पुरना। मैं पाँच साल का बालक वन कर आऊँगा और तेरी कथा सुनूँगा।"

दमयंती ने इष्टदेव की सूचनाओं का पालन किया। इष्टदेव ने पाँच गाल के बालक का रूप लिया और कथा सुनने बैठे। कथा समाप्त हुई। पूजा में रखी हुई सभी चीजें सान की हो गई।

उसी दिन दशामाँ ने दमयंती के पिता को सपने में कहा, 'हे राजा, तेरे घर जो नई दासी आई थी वह कहाँ है ?'

राजा ने कहा, 'वह तो चोर है। हमने उसे महल के बाहर निकाल दिया।' दशामाँ ने कहा, 'नहीं, वह निर्दोष है। वह अभी अश्वशाला में है। उसने मेरे व्रत का समापन किया है। मैं उस पर प्रसन्न हूँ। उसे वापस बुला ले। वह दासी नहीं, तेरी पुत्री दमयंती है।"

राजा ने तुरंत दमयंती को महल में बुलवाया और पूछा, "तुं कौन है?"

दमयंती उसके पैरों में पड़ी और कहा, "मैं ही आपकी पुत्री दमयंती हूँ। मैंने दशामाँ का डोरा बाँधा था लेकिन मेरे पति नल राजा ने उसे तोडकर अपमानित किया। उसीके कारण हमारी यह अवदशा हुई है।

अब रानी दमयंती पिता के घर आनंद से रहने लगी। दिन पर दिन बीते।

दमयंती एक सुशील नारी थी। राजा नल के बिना उसे चैन पडता नहीं था। वह सदैव उसे ही याद किया करती थी। यह बात उसके चहेरे पर उसके पिताने पढ ली।

राजा ने रानी से कहा, "दमयंती का विवाह किसी और से कर दें तो कैसा रहेगा ?"

रानी ने कहा, "ठीक है।"


उन्हों ने यह बात दमयंती से कही तो उसने कहा, "पिताजी सिर्फ नल ही मेरे पति है। कुछ भी करो लेकिन कैसे भी राजा नल को खोजो।"

"लेकिन कैसे ?" दमयंती ने कहा, "मेरा स्वयंवर रचिए उसमें देस-परदेश से राजा आएंगे। उन सब में मैं राजा नंल को पहचान कर उनके गले में वरमाला डालूँगी।"

का दमयंती के पिताने उसकी बात मानकर स्वयंवर रचाया। सब राजाओं को आमंत्रण भेजा गया। नल जिस राजा के वहाँ अश्वशाला में काम करता था उस राजा को भी आमंत्रण मिला। बहुत समय न था। उसने नल से कहा, "अच्छे से अच्छा घोडा निकालो। हमें स्वयंवर में जाना है।" नकारी

नल ने रथ तैयार किया। दमयंती के पिता नल की खोज में थे। उन्हों ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज कोई अग्नि नहीं जलाएगा। उन्होने अपने गुप्तचरों को भी आदेश दिया कि चारों ओर नजर रखना।जी

इस तरफ नल के राजा को भूख लगी तो उसे खिचडी खिलाने के लिये हाथ से अग्नि जलाकर खिचडी पकाई। गुप्तचरों ने यह बात राजा को कही, राजाने यह बात दमयंती को दोहराई।


दमयंती खुश हुई।


वह जानती थी कि ऐसा सिर्फ उसका पति नल ही कर सकता था। तुरंत ही उसने स्वयंवर की हाथिनी को श्रृंगार करवाया और कलश लेकर चल पडी राजा कतारबंध खडे थे। हाथिनी उनके पास से गुजरी।

पहला राजा...

दूसरा राजा...

तीसरा राजा.सिक

मिस ए

फिर से हाथिनी ने कुरुप राजा नल पर की कलश उतारा। दमयंती नल के पास गई और उसके पैरों में पडकर गिडगिडाने लगी, "मैंने आपको पहचान' लिया है। अब आप अपना यह रूप बदलकर अपने असली स्वरूप में आइए।"

राजा नल ने सर्प को याद किया। उससे मूल स्वरूप वापस देने की बिनती की। थोडी ही क्षणों में काल, कुरूप नल स्वरूपवान हो गया। नल और दमयंती अब सुखचैन से रहने लगे।

दिन पर दिन बितते गये, दशाफल के डोरे र व्रत के कारण राजा नल की दशा बदल गई। रानी दमयंती के साथ उन्हों ने नैषध देश की और प्रस्थान किया। दमयंती के पिताने उन्हें सुवर्ण मोहरें और हाथीघोडा आदि दिये थे।

रास्ते में कनकावती नगरी और मोतीसर तालाब आये। तालाब के पास दमयंती ने थोडा विश्राम लेना चाहा। तालाब के किनारे बैठी तो एक कोने से पाँच सोने की मछलियां पड़ी मिली।

वे आगे बढ़े।

नगरसेठ का नगर आया। सेठने जिस पात्र में राजा को भोजन दिया था वह पात्र भी सोने का होकर रास्ते में पड़ा था।

इस प्रकार दशाफल के डोरे ने नल और दमयंती की दशा संपूर्णतः







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

dashama na photo

Dashama photo download 2025

DASHAMA के  फोटो आप downloadकर  कर सकते हो फ्री में dashama photo download

मंच संचालन शायरी, ताली शायरी,stage shayari, programme shayari,स्टेज शायरी,anchoring script in hindi

मंच संचालन शायरी, ताली शायरी,stage shayari, programme shayari,स्टेज शायरी,anchoring script in hindi -Stri ke liye Kuchh Is tarike se Kahenge lakh Diye Jala Lijiye apni mahfil Mein Diye Jala Lijiye apni mahfil Mein Magar Roshani to hamare Aane Se Hogi darshakon mein jo Umang utsah badhane ke liye aapke Vakya Kuchh Is tarike se Honge Jindagi Ka Shauk Pala Nahi Jata Jindagi Ka Shauk Pala Nahi Jata seate kab Jala Kabhi Ujala -Nahin Jata Hai Zindagi mehnat Se samajh Jaati Hai Jindagi Har kam takdeer per Tala Nahin Jata Log mil Jaate Hain Har Mod per log mil Jaate Hain  Koi aapki Tarah Anmol Nahin Hota jajba badhane ke liye perfect dharan Karen mayush Mat Hona Jindagi Mein mayus Mat Hona - c -Jindagi Se Kisi bhi waqt Tera Naam Ban sakta hai agar dil mein ho aap Akhbar Bechne Wala Bhi Kalam Ban sakta hai ek prabhavshali udbodhan ke liye aap Kuchh Is tarike se kah sakte hain kitne Badi Kamal Ki Baat kahi hai ki Upar Likhne Mein Waqt To Lagta Hai Upar uthane...

Manch sanchalan shayari, मंच संचालन शायरी,stage shayari,स्टेज शायरी,ताली शायरी ,programme shayari

-निराला है आज का यार प्रति नूर बरसाने वाला वाला है उस्का याह अवसार बड़ा निराला है आज का यार नूर बरसाने वाला वाला है एक बर जोर्दन तालियां बाजा दे कर्यकराम कब कुरु होन वाला है  वो दोस्‍ते जयराम कांकेर शूरू हो गया है प्रताप की जय हो। aur doston Jab karykram Mein Hamare मुख्य अतिथि पहूंचे  Hamare mukhya Atithi Jab Aaye To unke to Swagat ke liye  Bheem aapke liye ek shayari Leiyar Aaya Hun Ki Kahate Hain Ki vah a gaye Din Ka Inteza r tha Aha Hamushon keushushon ke keushhi दीया जलाने आज के मुहब्बत के लिए स्वगीत में लोग जोर्डन तालियान बाजा दे शायरी गम का फुल हो गया, खूशाली आयेगी गम का फुल है , खूशाली आयेगी हर हर प्रस्तर की प्रति जगारियां तालियां बजाएगी, जैसे गीतों की प्रस्तुति दी गई।  तराह की शायरी बोल सक्ते हैं , थोडा सा प्यार थोडी सी दुआएं पात किजीये थोडा सा प्यार थोडी सी दुआएं एते किजीये इने बचनें के लिय जदरिया कलियार बाजा बाजी तैं कजर दानी को कोन है।  एही आपनी कादर दानी को तोर ना चाही अगार प्रस्सुति पासंद मैं हो के तलैयन बाजै इस्के खराब आके ली...

LOVE STORY AND SHAYRI

मीठे बोल बोलिए क्योंकि अल्फाजों होती है मीठे बोल बोलिए || क्योंकि अल्फाजों में जान होती है इन्हीं  आरती अरदास और अजान || होती है यह समुंदर के वह मोती हैं जिनसे इंसान  पहचान होती है || कार्यक्रम की शुरुआत देवी देवताओं के साथ करें एक बेहतरीन || समा बांधा जा सकता है इस तरीके से होंगे हरे भरे पेड़ों पर सूखी || डाली नहीं होती मुस्कुराते हो पर कभी गाली नहीं होती जो बंदा झुक || जाए प्रभु के चरणों में उसकी झोली कभी खाली नहीं होती    ||   पलके बिछाए पिंक कमाल ऐसी कि पल अपना बना अपनी अपना पूरा होना किसी के बगैर यह जिंदगी की हकीकत है दोस्तों मरता नहीं कोई किसी के बगैर इस जिंदगी की हकीकत है दोस्तों पर सांस लेने को जीना तो नहीं कहते अपनी बातों की वजन दारी कुछ इस तरीके से बात करें कोई माल में खुश है कोई सिर्फ दाल में खुश है कोई माल में खुश है कोई सिर्फ दाल में खुश है खुश नसीब है बोलो जो हर हाल में खुश है हर पल की वैल्यू बताते शायरी कुछ इस प्रकार से होगी किस हद तक जाना है कौन जानता है किस हद तक जाना है कौन जानता है किस मंजिल को पाना है कौन जानता है प्यार क...

गाय-भैंस के दूध बढ़ाने का मन्त्र, गाय भैंस का दूध बढ़ाने का मंत्र

गाय-भैंस के दूध बढ़ाने का मन्त्र 'ॐ ह्नीं करालिनि पुरुष सुखं मुजं ठं ठः ।' यह वोरभप्रोड्डीश तन्त्र का पंच दशाक्षर मन्त्र है। इसके विधिवत् प्रयोग से गाय और भैंस के दूध में वृद्धि होती है। गाय भैंस को जो भी घास-भूसादि खिलाना हो उसे उपरोक्त मन्त्र से १०८ बार अभिमन्त्रित करके उन्हें देने से दूध की मात्रा बढ़ जाती है ।

दशामाँ की स्तुति

                                                                दशामाँ की स्तुति जय जय जय दशामाँ । जय जय जय दशामाँ । तेरी स्तुति, भजन किर्तन जो श्रध्धा से गावै, सारे दुःख दुर हो पल में मन वांच्छित फल पावै, पुत्र रत्न देती बाँझिन को, निर्धन को धन देती, दुर्बल को बलवान करें, रोगी का रोग हर लेती । जय जय जय दशामाँ ! जय जय जय दशामाँ ! निशदिन ध्यान धरो मैया का सदा नाम का जाप करो, जन्म - जन्म के दुःख मिट जाएँ बिन प्रयास भव सिंधु तरो, जय जय जय दशामाँ ! जय जय जय दशामाँ ! Jay dashama

विद्या प्राप्ति के लिए विद्या प्राप्ति के लिए सरस्वती मंत्र

विद्या प्राप्ति के लिए 'ॐॐ नमः श्री श्री अहं वद बद बावादिनी भगवती सरस्वत्यं नमः स्वाहा विद्या देहि ममः हो सरस्वती स्वाहा । सूर्य या चन्द्र ग्रहण के दिन १४४ मन्त्र के जप से साधना का शुभारम्भ करना चाहिये। इसे २१ दिनों तक लगातार १०८ मन्त्र जप करके साधना में लगे रहें। इससे विद्या की प्राप्ति होती है।

तिजारी, इकतरा और आधासीसी (सिरदर्द) झाड़ने का मन्त्र

तिजारी, इकतरा और आधासीसी (सिरदर्द) झाड़ने का मन्त्र   'ॐ कामर देश कामक्षा देवी, तहाँ बसे इस्माईल जोगी । इस्माईल जोगी के तीन पुत्री, एक रोल, एक पक्षीले एक ताप तिजारी इकतरा अथवा आधा सीसी टोरे उतरे तो उतारो चढ़े तो मारो । ना उतरे तो गं गण मोर हंकारी । सबद सांचा, पिंड कांचा । फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए मोर पंख से झाड़ना चाहिए। * आवश्यक सूचना * तन्त्र मन्त्र अपने कार्य की सिद्धि के लिये हैं, न कि उनसे अनु चित लाभ उठाया जावे। पुस्तक में बहुत से उपयोगी तन्त्र मन्त्र दिये गये हैं फिर भी हमारी उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। जिस प्रकार कुआँ या तालाब जल पीने के लिये होता है न कि उसमे डब कर आत्महत्या की जावे या उससे किसी का अनिष्ट किया जावे। यह पुस्तक सर्व के कल्याण उपयों द्वारा किर भी कोई कुरी प्रकृति का गुण के लिये प्रकाशित की गई है किसी का अनिष्ट करे या और कोई अनुचित उपाय अपनाये तो उसमें हमारा क्या दोष है ? पुस्तके लिखिता विद्या सादरं यदि जप्यते, सिद्धिनं जायते तस्य कल्प कोटि शर्तेरी । गुरुं विनापिशास्त्रेऽस्मिन्नाधिकारः कथेचन् ।। अर्थ- जो व्यक्ति केवल पुस्तक...